सेंगोल की मूलभूत संकेतना दक्षिण भारत के तामिल साहित्य और संस्कृति से जुड़ी हुई है। सेंगोल दक्षिण भारत की चोल वंश के राजाओं की प्रतिष्ठा और शासन का प्रतीक था। यह सम्मान, बल और अधिकार का प्रतीक था।
ऐतिहासिक दस्तावेजों और मूर्तियों के अनुसार, चोल वंश के राजा अपने सिंहासन के ऊपर बैठते थे, जिसके सामने सेंगोल रखा जाता था। यह उनके अधिकार, आत्म-सम्मान, और शासन की दृढ़ता को प्रदर्शित करता था।
सेंगोल भारतीय ऐतिहासिक परंपरा में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह भारतीय लोकतंत्र की विशालता और अद्वितीयता का प्रतीक है, जो कि संविधानीय स्थापनाओं के अधिकार और न्यायाधीशों के कर्तव्यों की प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
इस प्रकार, सेंगोल की उत्पत्ति और उसका इतिहास, भारतीय लोकतंत्र और संविधान के मूल सिद्धांतों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसका नई संसद भवन में स्थापना करने का विचार यह सुनिश्चित करेगा कि हमारी संविधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, सम्मान और अधिकार को समर्थन और सुरक्षा प्राप्त हो।
ऐतिहासिक 'सेनगोल', 28 मई, 2023 को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। इस राजदंड को भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 को प्रतीकात्मक रूप से स्थानांतरण का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्राप्त किया था। अंग्रेजों से सत्ता का। तब से इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया है।
नए संसद भवन में 'सेंगोल' की स्थापना एक महत्वपूर्ण घटना है। यह भारत की स्वतंत्रता और उसके समृद्ध इतिहास की याद दिलाता है। यह लोकतंत्र और न्याय के प्रति देश की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।
'सेंगोल' एक प्राचीन भारतीय शासन सम्बंधी प्रतीक है, जो अधिकार और न्याय की प्रतीक है। यह एक अद्वितीय प्रतीक है, जो भारतीय संसदीय प्रणाली के गहनता और विविधता को दर्शाता है। सेंगोल नए संसद भवन के सेंट्रल हॉल में लगाया जाएगा। इसे स्पीकर की कुर्सी के बगल में रखा जाएगा।
राजदंड को संसद सत्र के उद्घाटन और स्वतंत्रता दिवस समारोह जैसे विशेष आयोजनों के दौरान बाहर लाया जाएगा। नई संसद भवन में 'सेंगोल' को स्थापित करने का उद्देश्य भारतीय संविधान और लोकतंत्र की महत्ता को मनाना है। यह संसदीय न्यायाधीशों और संविधान के अधिकारियों को याद दिलाता है कि उनके द्वारा किए गए निर्णयों का उद्देश्य हमेशा देश और उसके नागरिकों की भलाई के लिए होना चाहिए।
नई संसद भवन के लिए 'सेंगोल' का निर्माण संसद के दीर्घकालिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं को मान्यता देने के लिए किया जा रहा है। यह भारतीय संसद की अद्वितीयता और उसकी विविधता को दर्शाता है। यह भारतीय लोकतंत्र की सामर्थ्य और लचीलापन को प्रतिष्ठित करता है।
'सेंगोल' की स्थापना एक स्वागत योग्य कदम है। यह भारत के इतिहास और संस्कृति को संरक्षित करने का एक तरीका है। यह लोकतंत्र और न्याय के प्रति देश की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का एक तरीका भी है।
संगठनात्मक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से, 'सेंगोल' का नई संसद भवन में स्थापना करने का विचार भारतीय संसद के प्रतिष्ठा और प्रगतिशीलता को बढ़ावा देने वाला होगा।